माता सीता जी की आरती | Arti Mata Seetha
माता सीता, जिन्हें जानकी मां भी कहा जाता है, हिन्दू धर्म के पौराणिक कथाओं में एक महत्वपूर्ण चरित्र हैं। रामायण के अनुसार, उनकी विशेष पूजा से घर में धन की कभी कमी नहीं होती। इसलिए, सीता माता की आरती एक शक्तिशाली उपासना है जो भक्तों को आनंद और समृद्धि की प्राप्ति में मदद करती है।
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आरती का महत्व
माता सीता की आरती का पाठ करने से भक्तों को माता के कृपा और आशीर्वाद का अनुभव होता है। यह पूजा भक्तों को उनके जीवन में सुख-शांति का अहसास कराती है और सभी कठिनाईयों को दूर करने में मदद करती है।
Arti Goddess Seetha Hindi | आरती के श्लोक
आरती श्री जनक दुलारी की ।
सीता जी रघुवर प्यारी की ॥
यह श्लोक आरती की शुरुआत है, जो सीता माता की कृपा और प्रेम का उदाहारण है। इससे स्पष्ट होता है कि भक्त उनके प्रिय ईश्वर, रघुकुल श्रीराम के साथ माता सीता की पूजा करते हैं।
जगत जननी जग की विस्तारिणी,
नित्य सत्य साकेत विहारिणी,
परम दयामयी दिनोधारिणी,
सीता मैया भक्तन हितकारी की ॥
आरती श्री जनक दुलारी की ।
सीता जी रघुवर प्यारी की ॥
इस श्लोक में माता सीता को जगत की जननी, सत्य की अवतार, और भक्तों के हितकारी रूप में चित्रित किया गया है। उनकी दया, कृपा से भरपूर है, जो भक्तों को सदैव उनकी शरण में रखती है।
सती श्रोमणि पति हित कारिणी,
पति सेवा वित्त वन वन चारिणी,
पति हित पति वियोग स्वीकारिणी,
त्याग धर्म मूर्ति धरी की ॥
आरती श्री जनक दुलारी की ।
सीता जी रघुवर प्यारी की ॥
यह श्लोक माता सीता के पतिव्रता और धर्म-प्रिय स्वभाव को दर्शाता है। उनकी पति सेवा, त्याग, और धर्म में विश्वास उन्हें सती श्रोमणि बनाते हैं, जो भक्तों को मार्गदर्शन करती हैं।
विमल कीर्ति सब लोकन छाई,
नाम लेत पवन मति आई,
सुमीरात काटत कष्ट दुख दाई,
शरणागत जन भय हरी की ॥
आरती श्री जनक दुलारी की ।
सीता जी रघुवर प्यारी की ॥
इस श्लोक से यह स्पष्ट होता है कि माता सीता का नाम लेना भक्तों के जीवन में सुख और शांति का स्रोत है। उनकी शरण में आने से भक्तों का हर कठिनाई हरित कर दी जाती है।
समाप्ति
माता सीता की आरती के पाठ से भक्तों को आशीर्वाद मिलता है और उनका मानवीय जीवन सफलता और सुख के साथ भरा रहता है। इस आरती के माध्यम से भक्त अपने जीवन को माता सीता के प्रेरणा से सजीव करने का संकल्प लेते हैं और धन्यवाद से भरा हृदय से माता की पूजा करते हैं।